Bujh Gayee Tapte Huye Din Ki Agan Sanj Ne Chup-Chap.
बुझ गयी तपते हुए दिन की अगन,
सांझ ने चुप-चाप ही पी ली जगन,
रात झुक आयी पहन उजला वसन,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ,
चाँदनी के फूल तुम मुस्कुराओ ।
एक नीली झील सा फैला है अचल,
आज ये आकाश है कितना सजल,
चाँद जैसे रूप का उभरा कमल,
रात भर इस रूप का जादू जगाओ,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ ।
चल रहा है चैत का चंचल पवन,
बाँध लो बिखरी हुई उंड़ल सखन,
आज हो कजरा उदासी है नयन,
मांग भर लो भाल पर बिन्दीया सजाओ,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ ।
सांझ ने चुप-चाप ही पी ली जगन,
रात झुक आयी पहन उजला वसन,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ,
चाँदनी के फूल तुम मुस्कुराओ ।
एक नीली झील सा फैला है अचल,
आज ये आकाश है कितना सजल,
चाँद जैसे रूप का उभरा कमल,
रात भर इस रूप का जादू जगाओ,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ ।
चल रहा है चैत का चंचल पवन,
बाँध लो बिखरी हुई उंड़ल सखन,
आज हो कजरा उदासी है नयन,
मांग भर लो भाल पर बिन्दीया सजाओ,
प्राण तुम क्यूँ मौन हो कुछ गुन-गुनाओ ।
- Pandit Vinod Sharma.
- Jagjit Singh.