Deenan Dukh Haran Dev Santan Hitkari.

दीनन दुःख हरण देव संतन हितकारी ॥टेक॥
दीनन दुःख हरण देव संतन हितकारी ॥टेक॥

अजामील गीध व्याध इनमें कहो कौन साध ।
पंछी को पद पढ़ात गणिका सी तारी ॥१॥

ध्रुव के सिर छत्र देत प्रह्लाद को उबार लेत ।
भगत हेतु बांध्यो सेतु लंकपुरी जारी ॥२॥

तंडुल देत रीझ जात सागपात सों अघात ।
गिनत नहीं जूठे फल खाटे मीठे खारी ॥३॥

गज को जब ग्राह ग्रस्यो दुस्सासन चीर खस्यो ।
सभाबीच कृष्ण कृष्ण द्रौपदी पुकारी ॥४॥

इतने में हरि आय गए बसनन आरुढ़ भये ।
सूरदास द्वारे ठाढ़ो आन्धरो भिखारी ॥५॥

  • Surdas.
  • Jagjit Singh.