Teri Aankhon Se Hi Jaage Soye Hum Kab Tak Aakhir.
तेरी आँखों से ही जागे सोयें हम,
कब तक आख़िर तेरे ग़म में रोयें हम ।
वक़्त का मरहम ज़ख़्मों को भर देता है,
शीशे को भी ये पत्थर कर देता है,
रात में तुझको पायें दिन में खोयें हम ।
हर आहट पर लगता है तू आया है,
धूप है मेरे पीछे आगे साया है,
खुद अपनी ही लाश को कब तक ढोयें हम ।
कब तक आख़िर तेरे ग़म में रोयें हम ।
वक़्त का मरहम ज़ख़्मों को भर देता है,
शीशे को भी ये पत्थर कर देता है,
रात में तुझको पायें दिन में खोयें हम ।
हर आहट पर लगता है तू आया है,
धूप है मेरे पीछे आगे साया है,
खुद अपनी ही लाश को कब तक ढोयें हम ।
- Nida Fazli.
- Jagjit Singh.