Gulshan Ki Faqat Pholon Se Nahi Kanton Se Bhi Zenatein.
गुलशन की फ़क़त फूलों से नहीं काटों से भी ज़ीनत होती है,
जीने के लिये इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है ।
ऐ वाइज़-ए-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा,
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती है यहाँ रोज़ क़यामत होती है ।
वो पुरसिश-ए-ग़म को आये हैं कुछ ना सकूँ चुप रह ना सकूँ,
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है ।
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आसूँ,
फरीयाद-ओ-फ़ुगाँ से ऐ नादाँ तोहीन-ए-मोहब्बत होती है ।
जो आ के रूके दामन पे ‘सबा’ वो अश्क़ नहीं है पानी है,
जो अश्क़ ना छलके आँखो से उस अश्क़ की क़ीमत होती है ।
जीने के लिये इस दुनिया में ग़म की भी ज़रूरत होती है ।
ऐ वाइज़-ए-नादान करता है तू एक क़यामत का चर्चा,
यहाँ रोज़ निगाहें मिलती है यहाँ रोज़ क़यामत होती है ।
वो पुरसिश-ए-ग़म को आये हैं कुछ ना सकूँ चुप रह ना सकूँ,
ख़ामोश रहूँ तो मुश्किल है कह दूँ तो शिकायत होती है ।
करना ही पड़ेगा ज़ब्त-ए-अलम पीने ही पड़ेंगे ये आसूँ,
फरीयाद-ओ-फ़ुगाँ से ऐ नादाँ तोहीन-ए-मोहब्बत होती है ।
जो आ के रूके दामन पे ‘सबा’ वो अश्क़ नहीं है पानी है,
जो अश्क़ ना छलके आँखो से उस अश्क़ की क़ीमत होती है ।
- Saba Afghani.
- Jagjit Singh.