Kabhi Ghuncha Kabhi Shola Kabhi Shabnam Ki Tarah.
कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह ।
मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह ।
मैंने खुश्बू की तरह तुझको किया है मह्सूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह ।
कैसे हम-दर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मर्हम की तरह ।
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह ।
मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह ।
मैंने खुश्बू की तरह तुझको किया है मह्सूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह ।
कैसे हम-दर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मर्हम की तरह ।
- Rana Sahri.
- Jagjit Singh.