Kabhi Ghuncha Kabhi Shola Kabhi Shabnam Ki Tarah.

कभी गुंचा कभी शोला कभी शबनम की तरह,
लोग मिलते हैं बदलते हुए मौसम की तरह ।

मेरे महबूब मेरे प्यार को इल्ज़ाम न दे,
हिज्र में ईद मनाई है मोहर्रम की तरह ।

मैंने खुश्बू की तरह तुझको किया है मह्सूस,
दिल ने छेड़ा है तेरी याद को शबनम की तरह ।

कैसे हम-दर्द हो तुम कैसी मसीहाई है,
दिल पे नश्तर भी लगाते हो तो मर्हम की तरह ।
  • Rana Sahri.
  • Jagjit Singh.