Kabhi To Khul Ke Baras Abr-E-Meherbaan Ki Tarah.

कभी तो खुल के बरस अब्र-ए-मेहरबां की तरह,
मेरा वज़ूद है जलते हुए मकां की तरह ।

मैं इक ख़्वाब सही आपकी अमानत हूँ,
मुझे सम्भाल के रखियेगा जिस्म-ओ-जां की तरह ।

कभी तो सोच के वो शख़्स किस क़दर त बुलंद,
जो बिछ गया तेरे क़दमों में आसमां की तरह ।

बुला रहा है मुझे फ़िर किसी बदन का बसन्त,
गुज़र न जाये ये रुत भी कहीं खिज़ां की तरह ।
  • Prem Warbartni.
  • Chitra Singh.