Kya Khoya Kya Paaya Jag Mein, Milte Aur Bichadte Mag Mein. / क्या खोया क्या पाया जग में, मिलते और बिछड़ते मग में,
अमिताभ बच्चन :- ज़िन्दगी के शोर, राजनीत की अपाधापी, रिश्ते नातों कि गलियों और क्या खोया क्या पाया के बाज़ारों से आगे, सोच के रास्ते पर कहीं एक ऐसा नुक्कड़ आता है, जहाँ पहुँच कर इन्सान एकाकी हो जाता है । तब, जाग उठता है ‘कवि’ । फिर शब्दों के रंगो से जीवन की अनोखी तस्वीरें बनती है । कवितायें और गीत सपनों की तरह आते हैं, और कागज़ पर हमेशा के लिये अपने घर बना लेते हैं ।
अटल जी की ये कवितायें ऐसे ही पल ऐसे ही क्षणों में लिखी गयी हैं, जब सुनने वाले और सुनाने वाले में, तुम और मैं की दीवारें टूट जाती हैं, दुनिया की सारी धड़कने सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं, और कवि के शब्द दुनिया के हर सम्वेदनशील इन्सान के शब्द बन जाते हैं ।
क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिक़ायत,
यद्दपि चला गया पग पग में,
एक दृष्टि बीती पर ड़ाले,
यादों की पोटली टटोले,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनंत कहानी,
पर तन की अपनी सीमायें,
यद्दपि सौ श्रद्धों की वाणी,
इतना काफ़ी है अंतिम,
दस्तक पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
जन्म मरण का अविरत फ़ेरा,
जीवन बंजारों का ड़ेरा,
आज यहाँ कल कहाँ कुछ है,
कौन जानता किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमीत,
प्राणों के पंखों को तोले,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
अटल जी की ये कवितायें ऐसे ही पल ऐसे ही क्षणों में लिखी गयी हैं, जब सुनने वाले और सुनाने वाले में, तुम और मैं की दीवारें टूट जाती हैं, दुनिया की सारी धड़कने सिमट कर एक दिल में आ जाती हैं, और कवि के शब्द दुनिया के हर सम्वेदनशील इन्सान के शब्द बन जाते हैं ।
क्या खोया क्या पाया जग में,
मिलते और बिछड़ते मग में,
मुझे किसी से नहीं शिक़ायत,
यद्दपि चला गया पग पग में,
एक दृष्टि बीती पर ड़ाले,
यादों की पोटली टटोले,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
पृथ्वी लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन एक अनंत कहानी,
पर तन की अपनी सीमायें,
यद्दपि सौ श्रद्धों की वाणी,
इतना काफ़ी है अंतिम,
दस्तक पर ख़ुद दरवाज़ा खोलें,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
जन्म मरण का अविरत फ़ेरा,
जीवन बंजारों का ड़ेरा,
आज यहाँ कल कहाँ कुछ है,
कौन जानता किधर सवेरा,
अंधियारा आकाश असीमीत,
प्राणों के पंखों को तोले,
अपने ही मन से कुछ बोलें ।
- Amitabh Bachchan.
- Jagjit Singh.