Rukh Se Parda Utha Hai Zara Saqiya Bus Abhi Rang-E-Mehfil Badal Jaayega. / रूख़ से परदा उठा है ज़रा साकीया, बस अभी रंग-ए-महफ़िल
रूख़ से परदा उठा है ज़रा साकीया, बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जायेगा,
है जो बेहोश वो होश में आयेगा, गिरनेवाला है जो वो सम्भल जायेगा ।
तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो, वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा,
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से, मौत का भी इरादा बदल जायेगा ।
तीर की जान हैं दिल, दिल की जान तीर है, तीर को ना यूँ खींचो कहा मान लो,
तीर खींचा तो दिल भी निकल आयेगा, दिल जो निकला तो दम ही निकल जायेगा।
इसके हँसने में रोने का अंदाज़ है, ख़ाक़ उड़ाने में फ़रियाद का राज़ है,
इसको छेड़ो ना ‘अनवर’ ख़ुदा के लिये, वर्ना बीमार का दम निकल जायेगा ।
रूख़ से परदा उठा है ज़रा साकीया, बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जायेगा,
है जो बेहोश वो होश में आयेगा, गिरनेवाला है जो वो सम्भल जायेगा ।
तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो, वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा,
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से, मौत का भी इरादा बदल जायेगा ।
तीर की जान हैं दिल, दिल की जान तीर है, तीर को ना यूँ खींचो कहा मान लो,
तीर खींचा तो दिल भी निकल आयेगा, दिल जो निकला तो दम ही निकल जायेगा।
मेरा दामन तो जल ही चुका हैं मगर, आँच तुम पर भी आये गंवारा नहीं,
मेरे आँसू ना पोंछो ख़ुदा के लिये, वर्ना दामन तुम्हारा भी जल जायेगा ।
फूल कुछ इस तरह तोड़ ऐ बागबाँ, शाख़ हिलने ना पाये ना आवाज़ हो,
वर्ना गुलशन पे रौनक ना फिर आयेगी, हर कली का दिल जो दहल जायेगा ।
मेरी फ़रियाद से वो तड़प जायेंगे, मेरे दिल को मलाल इसका होगा मगर,
क्या ये कम है वो बेनक़ाब आयेंगे, मरनेवाले का अरमाँ निकल जायेगा ।
इसके हँसने में रोने का अंदाज़ है, ख़ाक़ उड़ाने में फ़रियाद का राज़ है,
इसको छेड़ो ना ‘अनवर’ ख़ुदा के लिये, वर्ना बीमार का दम निकल जायेगा ।
है जो बेहोश वो होश में आयेगा, गिरनेवाला है जो वो सम्भल जायेगा ।
तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो, वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा,
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से, मौत का भी इरादा बदल जायेगा ।
तीर की जान हैं दिल, दिल की जान तीर है, तीर को ना यूँ खींचो कहा मान लो,
तीर खींचा तो दिल भी निकल आयेगा, दिल जो निकला तो दम ही निकल जायेगा।
इसके हँसने में रोने का अंदाज़ है, ख़ाक़ उड़ाने में फ़रियाद का राज़ है,
इसको छेड़ो ना ‘अनवर’ ख़ुदा के लिये, वर्ना बीमार का दम निकल जायेगा ।
- Anwar Mirza Puri.
- Jagjit Singh.
- Complete Ghazal.
रूख़ से परदा उठा है ज़रा साकीया, बस अभी रंग-ए-महफ़िल बदल जायेगा,
है जो बेहोश वो होश में आयेगा, गिरनेवाला है जो वो सम्भल जायेगा ।
तुम तसल्ली ना दो सिर्फ़ बैठे रहो, वक़्त कुछ मेरे मरने का टल जायेगा,
क्या ये कम है मसीहा के रहने ही से, मौत का भी इरादा बदल जायेगा ।
तीर की जान हैं दिल, दिल की जान तीर है, तीर को ना यूँ खींचो कहा मान लो,
तीर खींचा तो दिल भी निकल आयेगा, दिल जो निकला तो दम ही निकल जायेगा।
मेरा दामन तो जल ही चुका हैं मगर, आँच तुम पर भी आये गंवारा नहीं,
मेरे आँसू ना पोंछो ख़ुदा के लिये, वर्ना दामन तुम्हारा भी जल जायेगा ।
फूल कुछ इस तरह तोड़ ऐ बागबाँ, शाख़ हिलने ना पाये ना आवाज़ हो,
वर्ना गुलशन पे रौनक ना फिर आयेगी, हर कली का दिल जो दहल जायेगा ।
मेरी फ़रियाद से वो तड़प जायेंगे, मेरे दिल को मलाल इसका होगा मगर,
क्या ये कम है वो बेनक़ाब आयेंगे, मरनेवाले का अरमाँ निकल जायेगा ।
इसके हँसने में रोने का अंदाज़ है, ख़ाक़ उड़ाने में फ़रियाद का राज़ है,
इसको छेड़ो ना ‘अनवर’ ख़ुदा के लिये, वर्ना बीमार का दम निकल जायेगा ।