Mili Hawaon Mein Udne Ki Wo Sazaa Yaroon. / मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों,
मिली हवाओं में उड़ने की वो सज़ा यारों,
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों ।
वो बे-ख़याल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों,
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों ।
मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी,
के अपने बारे में कुछ भी ना लिख सका यारों ।
तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था,
मैं उसके घर का पता किससे पूछता यारों ।
के मैं ज़मीन के रिश्तों से कट गया यारों ।
वो बे-ख़याल मुसाफ़िर मैं रास्ता यारों,
कहाँ था बस में मेरे उसको रोकना यारों ।
मेरे कलम पे ज़माने की गर्द ऐसी थी,
के अपने बारे में कुछ भी ना लिख सका यारों ।
तमाम शहर ही जिसकी तलाश में गुम था,
मैं उसके घर का पता किससे पूछता यारों ।
- Waseem Barelvii.
- Jagjit Singh - Lata Mangeshkar.