Ibtedaa ( Har Ek Baat Pe Kehte Ho Tum Ke Tu Kya Hai ? ) / इबतेदा ( हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ? )

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और ।


बल्ली मारहां के मोहल्ले की, वो पेचीदा दलीलो कि सी गलियाँ, सामने टाल के नुकड्ड पे बटेरों के कसीदे, गुड़-गुड़ाती हुई पान कि पीकों में वो दाद, वो वाह वाह, चंद दरवाज़े पे लटके हुए बोसिदा से कुछ टाट के परदे, एक बकरी के मम्मीयाने की आवाज़, और धुंधलायी हुई शाम के बेनूर अंधेरे, ऐसे दीवारों से मुहँ जोड़ के चलते हैं यहाँ, चूड़ीवाला के कटरे की बड़ी भी जैसे, अपनी बुझती हुई आँखो से दरवाज़े टटोले, इसी बेनूर अंधेरी सी गली कासिम से, एक तरतीम चरागों की शुरू होती है, एक कुरान-ए-सुख़न का सफ़हा खुलता है,
असद अल्लाह ख़ाँ ग़ालिबका पता मिलता है


हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ?
तुम्हीं कहो के ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है ?

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है ?

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है ?

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है ?

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है ?
  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Gulzar.
  • Jagjit Singh.
  • Vinod Sehgal.
  • Chitra Singh.

  • Complete Ghazal......
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है ?
तुम्हीं कहो के ये अंदाज़-ए-गुफ़्तगू क्या है ?

न शोले में ये करिश्मा न बर्क़ में ये अदा,
कोई बताओ कि वो शोख़-ए-तुंदख़ू क्या है ?

ये रश्क है कि वो होता है हमसुख़न हमसे,
वगर्ना ख़ौफ़-ए-बदामोज़ी-ए-अदू क्या है ?

चिपक रहा है बदन पर लहू से पैराहन,
हमारी ज़ेब को अब हाजत-ए-रफ़ू क्या है ?

जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा,
कुरेदते हो जो अब राख जुस्तजू क्या है ?

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ायल,
जब आँख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है ?

वो चीज़ जिसके लिये हमको हो बहिश्त अज़ीज़,
सिवाए बादा-ए-गुल्फ़ाम-ए-मुश्कबू क्या है ?

पियूँ शराब अगर ख़ुम भी देख लूँ दो चार,
ये शीशा-ओ-क़दाह-ओ-कूज़ा-ओ-सुबू क्या है ?

रही न ताक़त-ए-गुफ़्तार और अगर हो भी,
तो किस उम्मीद पे कहिये के आरज़ू क्या है ?

बना है शाह का मुसाहिब, फिरे है इतराता,
वगर्ना शहर में 'ग़ालिब' की आबरू क्या है ?

  • Complete Ghazal......
है बस कि हर इक उनके इशारे में निशाँ और,
करते हैं मुहब्बत तो गुज़रता है गुमाँ और ।

या रब वो न समझे हैं न समझेंगे मेरी बात,
दे और दिल उनको जो न दे मुझको ज़ुबाँ और ।

आबरू से है क्या उस निगाह -ए-नाज़ को पैबंद,
है तीर मुक़र्रर मगर उसकी है कमाँ और ।

तुम शहर में हो तो हमें क्या ग़म जब उठेंगे,
ले आयेंगे बाज़ार से जाकर दिल-ओ-जाँ और ।

हरचंद सुबुकदस्त हुए बुतशिकनी में,
हम हैं तो अभी राह में है संग-ए-गिराँ और ।

है ख़ून-ए-जिगर जोश में दिल खोल के रोता,
होते कई जो दीदा-ए-ख़ूँनाबफ़िशाँ और ।

मरता हूँ इस आवाज़ पे हरचंद सर उड़ जाये,
जल्लाद को लेकिन वो कहे जाये कि हाँ और ।

लोगों को है ख़ुर्शीद-ए-जहाँ-ताब का धोका,
हर रोज़ दिखाता हूँ मैं इक दाग़-ए-निहाँ और ।

लेता न अगर दिल तुम्हें देता कोई दम चैन,
करता जो न मरता कोई दिन आह-ओ-फ़ुग़ाँ और ।

पाते नहीं जब राह तो चढ़ जाते हैं नाले,
रुकती है मेरी तब'अ तो होती है रवाँ और ।

हैं और भी दुनिया में सुख़नवर बहुत अच्छे,
कहते हैं कि 'ग़ालिब' का है अंदाज़-ए-बयाँ और ।