Bus Ke Dushwar Hai Har Kaam Ka Aasaan Hona. - Jagjit Singh / बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना, - जगजीत सिंह


Jagjit Singh Sahab version was the combination of the 'matlaa' & 'sher' of five ghazals of Ghalib. Check the composition by Sahab. I hope viewers would also like complete ghazals by Ghalib.....


बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना ।

घर हमारा, जो न रोते भी, तो वीराँ होता,
बह्र गर बह्र न होता तो बयाबाँ होता ।

इशरते कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है, दवा हो जाना ।

दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ ।

इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई,
मेरे दिल की दवा करे कोई

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ,
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई ।
  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Jagjit Singh.

  • Complete Ghazal.....
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना,
आदमी को भी मयस्सर नहीं इन्साँ होना ।

गिरिया चाहे है ख़राबी मेरे काशाने की,
दर-ओ-दीवार से टपके है बयाबाँ होना ।

वा-ए-दीवानगी-ए-शौक़ के हर दम मुझ को,
आप जाना उधर और आप ही हैराँ होना ।

जल्वा अज़बस के तक़ाज़-ए-निगह करता है,
जौहर-ए-आईन भी चाहे है मिज़ग़ाँ होना ।

इश्रत-ए-क़त्लगह-ए-अहल-ए-तमन्ना मत पूछ,
ईद-ए-नज़्ज़ारा है शमशीर का उरियाँ होना ।

ले गये ख़ाक में हम दाग़-ए-तमन्ना-ए-निशात,
तू हो और आप ब-सदरंग-ए-गुलिस्ताँ होना ।

इश्रत-ए-पारा-ए-दिल, ज़ख़्म-ए-तमन्ना ख़ाना,
लज़्ज़त-ए-रीश-ए-जिगर ग़र्क़-ए-नमक्दाँ होना ।

की मेरे क़त्ल के बाद उस ने जफ़ा से तौबा,
हाये उस ज़ोदपशेमाँ का पशेमाँ होना ।

हैफ़ उस चार गिरह कपड़े की क़िस्मत 'ग़ालिब',
जिस की क़िस्मत में हो आशिक़ का गरेबाँ होना ।

  • Complete Ghazal.....
घर हमारा, जो न रोते भी, तो वीराँ होता,
बह्र गर बह्र न होता तो बयाबाँ होता ।

तंगी-ए-दिल का गिला क्या, ये वो काफ़िर दिल है,
कि अगर तंग न होता, तो परेशाँ होता ।

बादे-यक उम्र-ए-वरा, बार तो देता बारे,
काश रिज़वाँ ही दर-ए-यार का दरबाँ होता ।

  • Complete Ghazal.....
इशरते कतरा है दरिया में फ़ना हो जाना,
दर्द का हद से गुजरना है, दवा हो जाना ।

तुझसे है किस्मत में मेरी सूरत-ए-कुफ़्ल-ए-अब्जद,
था लिखा बात के बनते ही जुदा हो जाना ।

दिल हुआ कशमकश चराए जहमत में तमाम,
मिट गया घिसने में इस उक्दे का वा हो जाना ।

अब ज़फ़ा से भी हैं महरूम हम अल्लाह अल्लाह,
इस कदर दुश्मन-ए-अरबाब-ए-वफ़ा हो जाना ।

ज़ोफ़ से गिरिया मुबादिल बाह दम सर्द हवा,
बावर आया हमें पानी का हवा हो जाना ।

दिल से मिटना तेरी अन्गुश्त हिनाई का ख़्याल,
हो गया गोश्त से नाखून का जुदा हो जाना ।

है मुझे अब्र-ए-बहारी का बरस कर खुलना,
रोते-रोते ग़म-ए-फ़ुरकत में फ़ना हो जाना ।

गर नहीं निकहत-ए-गुल को तेरे कूचे की हवस,
क्यों है गर्द-ए-राह-ए-जोलने सबा हो जाना ।

बख्शे हैं जलवे गुल जोश-ए-तमाशा 'ग़ालिब',
चश्म को चाहिये हर रंग में वा हो जाना ।

  • Complete Ghazal.....
दर्द मिन्नतकश-ए-दवा न हुआ,
मैं न अच्छा हुआ, बुरा न हुआ ।

जमा करते हो क्यों रक़ीबों को,
इक तमाशा हुआ गिला न हुआ ।

हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जायें,
तू ही जब ख़ंजर आज़मा न हुआ ।

कितने शीरीं हैं तेरे लब के रक़ीब,
गालियाँ खा के बेमज़ा न हुआ ।

है ख़बर गर्म उनके आने की,
आज ही घर में बोरिया न हुआ ।

क्या वो नमरूद की ख़ुदाई थी,
बंदगी में मेरा भला न हुआ ।

जान दी, दी हुई उसी की थी,
हक़ तो यूँ है के हक़ अदा न हुआ ।

ज़ख़्म गर दब गया लहू न थमा,
काम गर रुक गया रवा न हुआ ।

रहज़नी है कि दिलसितानी है,
ले के दिल, दिलसिताँ रवा न हुआ ।

कुछ तो कहिये कि लोग कहते हैं,
आज 'ग़ालिब' ग़ज़लसरा न हुआ ।

  • Complete Ghazal.....
इब्न-ए-मरियम हुआ करे कोई,
मेरे दिल की दवा करे कोई ।

शर'अ-ओ-आईन पर मदार सही,
ऐसे क़ातिल का क्या करे कोई ।

चाल जैसे कड़ी कमाँ का तीर,
दिल में ऐसे के जा करे कोई ।

बात पर वाँ ज़ुबान कटती है,
वो कहें और सुना करे कोई ।

बक रहा हूँ जुनूँ में क्या-क्या कुछ,
कुछ न समझे ख़ुदा करे कोई ।

न सुनो गर बुरा कहे कोई,
न कहो गर बुरा करे कोई ।

रोक लो गर ग़लत चले कोई,
बख़्श दो गर ग़लत करे कोई ।

कौन है जो नहीं है हाजतमंद,
किसकी हाजत रवा करे कोई ।

क्या किया ख़िज्र ने सिकंदर से,
अब किसे रहनुमा करे कोई ।

जब तवक़्क़ो ही उठ गयी 'ग़ालिब',
क्यों किसी का गिला करे कोई ।