Mere Man Ki Andh Tamas Mein Jyotirmayi Utaro. / मेरे मन के अंध तमस में, ज्योर्तीमयी उतरो ।
मेरे मन के अंध तमस में,
ज्योर्तीमयी उतरो ।
कहाँ यहाँ देवो का नन्दन,
मल्याचल का अभिनव चंदन,
मेरे उर के उजड़े वन,
करूणामयी वीचरो ।
नहीं कहीं कुछ मुझ में सुन्दर,
काजल सा काला ये अंतर,
प्राणों के गहरे गहवर में,
ममतामयी विहरो ।
ज्योर्तीमयी उतरो ।
कहाँ यहाँ देवो का नन्दन,
मल्याचल का अभिनव चंदन,
मेरे उर के उजड़े वन,
करूणामयी वीचरो ।
नहीं कहीं कुछ मुझ में सुन्दर,
काजल सा काला ये अंतर,
प्राणों के गहरे गहवर में,
ममतामयी विहरो ।
- Jagjit Singh.