Shayer-E-Fitrat Hoon Main Jab Fikr Farmata Hoon Main.
शायर-ए-फ़ितरत हूँ मैं जब फ़िक्र फ़रमाता हूँ मैं,
रूह बनकर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं ।
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं ।
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर,
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं ।
हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये,
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं ।
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "जिगर",
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं ।
रूह बनकर ज़र्रे-ज़र्रे में समा जाता हूँ मैं ।
आ कि तुझ बिन इस तरह ऐ दोस्त घबराता हूँ मैं,
जैसे हर शै में किसी शै की कमी पाता हूँ मैं ।
तेरी महफ़िल तेरे जलवे फिर तक़ाज़ा क्या ज़रूर,
ले उठा जाता हूँ ज़ालिम ले चला जाता हूँ मैं ।
हाय री मजबूरियाँ तर्क-ए-मोहब्बत के लिये,
मुझको समझाते हैं वो और उनको समझाता हूँ मैं ।
एक दिल है और तूफ़ान-ए-हवादिस ऐ "जिगर",
एक शीशा है कि हर पत्थर से टकराता हूँ मैं ।
- Vinod Sehgal.
- Jigar Moradabadi.