Ab Aksar Chup Chup Se Rahe Hain Yun Hi Kabu Lab Khole Hain.

अब अक्सर चुप-चुप से रहे हैं यूँ ही कभू लब खोले हैं,
पहले "फ़िराक़" को देखा होता अब तो बहुत कम बोले हैं ।

दिन में हम को देखने वालों अपने अपने हैं औक़ाब,
जाओ न तुम इन ख़ुश्क आँखों पर हम रातों को रो ले हैं ।

ग़म का फ़साना सुनने वालों आख़िर-ए-शब आराम करो,
कल ये कहानी फिर छेड़ेंगे हम भी ज़रा अब सो ले हैं ।
  • Jagjit Singh.
  • Firaq Gorakhpuri.