Shaam Se Aankh Mein Nami Si Hai Aaj Phir Aapki Kami Si Hai.

शाम से आँख में नमी सी है,
आज फिर आपकी कमी सी है ।

दफ़्न कर दो हमें की साँस मिले,
नब्ज़ कुछ देर से थमी सी है ।

वक़्त रहता नहीं कहीं टिककर,
इसकी आदत भी आदमी सी है ।

कोई रिश्ता नहीं रहा फिर भी,
एक तस्लीम लाज़मी सी है ।


खुश्बू जैसे लोग मिले अफ़साने में,
एक पुराना ख़त खुला अन्जाने में ।

शाम के साये बालिश्तों से नापे हैं,
चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में ।
  • Gulzar.
  • Jagjit Singh.