Saari Duniya Ka Jo Maseeha Hai Apne Hi Ghar Mein Wo.
सारी दुनिया का जो मसीहा है,
अपने ही घर में वो अकेला है ।
रेत के घर में काँच के रिश्ते,
ज़िन्दगी भी अजब तमाशा है ।
अब कहीं कुछ नज़र नहीं आता,
दूर तक ये धुँआ धुँआ क्या है ।
ज़िन्दगी रास्ता है काँटों का,
हो के जिसपे हमे गुज़रना है ।
मोम के जिस्म धुप की चादर,
ऐसा मंज़र भी हमने देखा है ।
ये मुकद्दर का खेल है सारा,
इक भिखारी है इक दाता है ।
अपने ही घर में वो अकेला है ।
रेत के घर में काँच के रिश्ते,
ज़िन्दगी भी अजब तमाशा है ।
अब कहीं कुछ नज़र नहीं आता,
दूर तक ये धुँआ धुँआ क्या है ।
ज़िन्दगी रास्ता है काँटों का,
हो के जिसपे हमे गुज़रना है ।
मोम के जिस्म धुप की चादर,
ऐसा मंज़र भी हमने देखा है ।
ये मुकद्दर का खेल है सारा,
इक भिखारी है इक दाता है ।
- Jagjit Singh.