Chand Ke Saath Kai Dard Purane Nikale Kitane Gham.
चाँद के साथ कई दर्द पुराने निकले,
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले ।
फ़स्ल-ए-गुल आई फिर एक बार असिनन-ए-वफ़ा,
अपने ही ख़ून की दरिया में नहाने निकले ।
दिल ने एक ईटं से तामीर किया ताज-महल,
तूने एक बात कही लाख़ फ़साने निकले ।
दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिज्रा में खड़ा सोचता हूँ,
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले ।
कितने ग़म थे जो तेरे ग़म के बहाने निकले ।
फ़स्ल-ए-गुल आई फिर एक बार असिनन-ए-वफ़ा,
अपने ही ख़ून की दरिया में नहाने निकले ।
दिल ने एक ईटं से तामीर किया ताज-महल,
तूने एक बात कही लाख़ फ़साने निकले ।
दश्त-ए-तन्हाई-ए-हिज्रा में खड़ा सोचता हूँ,
हाय क्या लोग मेरा साथ निभाने निकले ।
- Amjad Islam Amjad.
- Jagjit Singh.