Kanton Ki Chuban Payii Pholon Ka Mazaa Bhi Barsaat Ke.

काँटों की चुभन पायी, फूलों का मज़ा भी,
दिल दर्द के मौसम में, रोया भी हँसा भी ।

आने का सबब याद न जाने की ख़बर है,
वो दिल में रहा और उसे तोड़ गया भी ।

हर एक से मंज़िल का पता पूछ रहा है,
गुमराह मेरे साथ हुआ राहनुमा भी ।

‘गुमनाम’ कभी अपनो से जो ग़म हुए हासिल,
कुछ याद रहे उनमें तो कुछ भूल गये भी ।
  • Surender Malik 'Gumnam'.
  • Chitra Singh.