Ek Baras Beet Gaya, Sharad Chandni Udaas. / जुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास,

अटल बिहारी वाजपेयी :- इमरजेन्सी लगी थी । सारा देश एक जेल-ख़ाने में बदल दिया गया था । स्वतंत्रताओं का अपहरण हुआ था । बड़ी संख्या में लोग गिरफ़्तार किये गये थे । जेलों में बंद किये गये थे । जब एक साल बीत गया, तो मैंने एक छोटी सी कविता लिखी ।

जुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास,
सिसकी भरते सावन का, अंतरघट बीत गया,
एक बरस बीत गया, एक बरस बीत बया ।

एक बरस बीत गया, एक बरस बीत गया,
जुलसाता जेठ मास, शरद चाँदनी उदास,
सिसकी भरते सावन का, अंतरघट बीत गया,
एक बरस बीत गया.................................

सिखचों में सिमटा जग, किन्तु विकल प्राण विहग,
धरती से अम्बर तक, गुंज मुक्ती गीत गाया,
एक बरस बीत गया.................................

पथ निहारते नयन, गिनते दिन पलछिन,
लौट कभी आयेगा, मन का जो मीत गया,
एक बरस बीत गया.................................
Atal Bihari Vajpayee.
Jagjit Singh.