Bazeeca-E-Atfal Hai Duniya Mere Aage Hota Hai Shab-O-Roz. / बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे, होता है शब-ओ-रोज़

बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे ।

होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते,
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे ।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ।
  • Mirza Asadullah Khan 'Ghalib'.
  • Jagjit Singh.

  • Complete Ghazal.....
बाज़ीचा-ए-अत्फ़ाल है दुनिया मेरे आगे,
होता है शब-ओ-रोज़ तमाशा मेरे आगे ।

इक खेल है औरंग-ए-सुलेमाँ मेरे नज़दीक,
इक बात है ऐजाज़-ए-मसीहा मेरे आगे ।

जुज़ नाम नहीं सूरत-ए-आलम मुझे मंज़ूर,
जुज़ वहम नहीं हस्ती-ए-अशिया मेरे आगे ।

होता है निहाँ गर्द में सेहरा मेरे होते,
घिसता है जबीं ख़ाक पे दरिया मेरे आगे ।

मत पूछ के क्या हाल है मेरा तेरे पीछे,
तू देख के क्या रंग है तेरा मेरे आगे ।

सच कहते हो ख़ुदबीन-ओ-ख़ुदआरा हूँ न क्यों हूँ,
बैठा है बुत-ए-आईना सीमा मेरे आगे ।

फिर देखिये अन्दाज़-ए-गुलअफ़्शानी-ए-गुफ़्तार,
रख दे कोई पैमाना-ए-सहबा मेरे आगे ।

नफ़रत का गुमाँ गुज़रे है मैं रश्क से गुज़रा,
क्यों कर कहूँ लो नाम न उसका मेरे आगे ।

ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र,
काबा मेरे पीछे है कलीसा मेरे आगे ।

आशिक़ हूँ पे माशूक़ फ़रेबी है मेर काम,
मजनूँ को बुरा कहती है लैला मेरे आगे ।

ख़ुश होते हैं पर वस्ल में यूँ मर नहीं जाते,
आई शब-ए-हिजराँ की तमन्ना मेरे आगे ।

है मौजज़न इक क़ुल्ज़ुम-ए-ख़ूँ काश ! यही हो,
आता है अभी देखिये क्या-क्या मेरे आगे ।

गो हाथ को जुम्बिश नहीं आँखों में तो दम है,
रहने दो अभी साग़र-ओ-मीना मेरे आगे ।

हमपेशा-ओ-हममशरब-ओ-हमराज़ है मेरा,
'गा़लिब' को बुरा क्यों, कहो अच्छा मेरे आगे ।