Saher Gah-E-Idd Mein Daur-E-Subu Tha. / सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था,
सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था,
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था ।
गुल-ओ-आईना क्या ख़ुर्शीद-ओ-माह क्या,
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था ।
मगर दीवाना था गुल भी किसी का,
के पैराहन में सौ जगहा-रफू था ।
ना देखा 'मिर'-ए-आवारा को लेकिन,
गुबार एक लातवाँ सा हू-ब-हू था ।
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था ।
गुल-ओ-आईना क्या ख़ुर्शीद-ओ-माह क्या,
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था ।
मगर दीवाना था गुल भी किसी का,
के पैराहन में सौ जगहा-रफू था ।
ना देखा 'मिर'-ए-आवारा को लेकिन,
गुबार एक लातवाँ सा हू-ब-हू था ।
- Jagjit Singh.
- Meer Taqi 'Meer'.
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सहर गह-ए-ईद में दौर-ए-सुबू था,
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था ।
पर अपने जाम में तुझ बिन लहू था ।
जहाँ पुर है फ़साने से हमारे,
दिमाग़-ए-इश्क़ हम को भी कभू था ।
दिमाग़-ए-इश्क़ हम को भी कभू था ।
गुल-ओ-आईना क्या ख़ुर्शीद-ओ-माह क्या,
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था ।
जिधर देखा उधर तेरा ही रू था ।
मगर दीवाना था गुल भी किसी का,
के पैराहन में सौ जगहा-रफू था ।
के पैराहन में सौ जगहा-रफू था ।
ना देखा 'मिर'-ए-आवारा को लेकिन,
गुबार एक लातवाँ सा हू-ब-हू था ।
गुबार एक लातवाँ सा हू-ब-हू था ।