Ghar Se Hum Nikle The Masjid Ki Taraf Jaane Ko Rind.

घर से हम निकले थे मस्ज़िद की तरफ़ जाने को,
रिंद बहका के हमें ले गये मैख़ाने को ।

ये ज़बां चलती है नासेह के छुरी चलती है,
ज़िबाह करने मुझे आया है के समझाने को ।

आज कुछ और भी पी लूँ के सुना है मैने,
आते हैं हज़रत-ए-वाइज़ मेरे समझाने को ।

हट गई आरिज़-ए-रोशन से तुम्हारे जो नक़ाब,
रात भर शम्मा से नफ़रत रही दीवाने को ।
  • Jagjit Singh.