Lab-E-Khamosh Se Izhaar-E-Tamanna Chahe.
लब–ए–खामोश से इज़्हार–ए–तमन्ना चाहे,
बात करने को भी तस्वीर का लहज़ा चाहे ।
तू चले साथ तो आहट भी ना आए अपनी,
ड़र में आहन भी ना हो यूँ तुझे तन्हा चाहे ।
ख़्वाब में रोए तो एहसास हो सैराबी का,
रेत पे सोये मगर आँख में दरिया चाहे ।
ऐसे तैराक़ भी देखे हैं ‘मुज़फ़्फ़र’ हमने,
गर्क़ होने के लिये भी जो सहारा चाहे ।
बात करने को भी तस्वीर का लहज़ा चाहे ।
तू चले साथ तो आहट भी ना आए अपनी,
ड़र में आहन भी ना हो यूँ तुझे तन्हा चाहे ।
ख़्वाब में रोए तो एहसास हो सैराबी का,
रेत पे सोये मगर आँख में दरिया चाहे ।
ऐसे तैराक़ भी देखे हैं ‘मुज़फ़्फ़र’ हमने,
गर्क़ होने के लिये भी जो सहारा चाहे ।
- Muzaffar Warsi.
- Chitra Singh.