Tumhari Anjuman Se Uth Ke Deewane Kahan Jate.
तुम्हारी अन्जुमन से उठ के दीवाने कहाँ जाते,
जो वाबिस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते ।
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता ना मैख़ाना,
तो ठुकराये हुए इन्सान ख़ुदा जाने कहाँ जाते ।
तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की,
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते ।
चलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानग़ी अपनी,
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते ।
जो वाबिस्ता हुए तुमसे वो अफ़साने कहाँ जाते ।
निकल कर दैर-ओ-काबा से अगर मिलता ना मैख़ाना,
तो ठुकराये हुए इन्सान ख़ुदा जाने कहाँ जाते ।
तुम्हारी बेरुख़ी ने लाज रख ली बादा-ख़ाने की,
तुम आँखों से पिला देते तो पैमाने कहाँ जाते ।
चलो अच्छा हुआ काम आ गयी दीवानग़ी अपनी,
वगरना हम ज़माने भर को समझाने कहाँ जाते ।
- Qateel Shifai.
- Chitra Singh.